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बसे हिरदय ढाई आखर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
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आ गये फिर
चैत के दिन
सूर्यकुल की कथा कहने
पत्तियों ने ढप बजाया
गा रहीं चैती हवाएँ
दे रहे हैं सुरज देवा
जोत की सबको दुआएँ
धूप सोनल
लौट आई
आँगनों में लगी रहने
रामजी का जन्म-उत्सव
दोपहर ने गाई सोहर
अवध का सत, बंधु, व्यापा
बसे हिरदय ढाई आखर
बिरछ-गाछों ने
उमगकर
नये हरियल पात पहने