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बस्ता / जय गोस्वामी
Kavita Kosh से
पृथ्वी को पीठ पर लादे यह मैदान पार करता चला
पीठ के बस्ते में है बहुत-कुछ-
बहुत से बच्चों की रुलाई, माँ की झिड़की-
गृहस्थ के घर घुसे चोर का
पैर फिसल गिर पड़ने की आवाज़-
कराह है
मृत्यु-पथगामी का अस्फुट स्वर में बोलना
'मत मार मुझे'
यह मैदान पार हो चला
पीठ की गठरी से उस राह पर
टप-टप ख़ून टपकता जाता-
ख़ून टपकता है पीछे पाँव के, पजामे पर
विराट बस्ते में केवल खड़बड़ हो रहा । लोथड़े सारे
फिर से न हो जाएँ ज़िन्दा !
बांग्ला से अनुवाद : संजय भारती