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बस्ते का बोझ / श्रीप्रसाद

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मेरे इस भारी बस्ते को
कर दे कोई कम

बारह कापी, आठ किताबें
इसमें भरता हूँ
फिर खाने का अपना डिब्बा
इसमें धरता हूँ

वजन बढ़ाता कलरबक्स भी
खड़िया, स्लेट, कलम

मेरा एक बोझ बन जाता
विद्या का बस्ता
गिर-गिर पड़ता, किसी तरह से
कटता है रस्ता

छिल-छिल जाता कंधा, लगता
अब निकलेगा दम

इस बस्ते से पीठ झुक गई
टेढ़ी कमर हुई
सब कहते हैं बच्चे होते
कोमल, छुईमुई
कोमल, छुईमुई

देख दशा माता सरस्वती
की आँखें हैं नम

इधर ज्ञान है एक बोझ-सा
उधर फूल फूले
रटो सभी इतिहास, उधर
तितली झूला झूले

महके महुवा, कोयल गाए
मोर करे छम-छम

खेलकूद कम हुआ हमारा
केवल पढ़ना है
यह बनना है, वह बनना है
आगे बढ़ना है

कविता गई, कहानी छूटी
गीत गए, सरगम
खेलें, पढ़ें हँसें, मुसकाएँ
नाचें फूलों से
घूमें, झूमें, करें काम कुछ
सीखें भूलों से

छनी रहा है खुशियाँ बस्ता
बढ़ा रहा है गम।