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बस इतनी-सी ज़िंदगी / सुदर्शन रत्नाकर
Kavita Kosh से
खिलने दो
ख़ुशबू बाँटने दो
मत तोड़ो अभी
साथियों के संग रहने दो
जी लेने दो जीभर कर
साँस खुले में लेने दो।
तोड़ भी लिया तो
क्या करोगे तुम
पल भर देखोगे
पल भर सूघोंगे
फूलदान में सजाओगे
या फिर मसल दोगे
फेंक दोगे कूड़ेदान में।
खिला हूँ तो खिलने दो न
महकने दो न
देखने दो सौन्दर्य औरों को भी
ख़ुशबू फैलाने दो मुझे
तेरी ही बगिया का फूल हूँ
चार दिन रहूँगा
समय आने पर
स्वयं ही मुरझा जाऊँगा
तुम तोड़ोगे तो पीड़ा होगी न
दुख तो होगा न कि
पाई भी तो बस इतनी-सी ज़िंदगी।