बस वचन ये चाहिए / सरोज मिश्र
लो सम्हालो चाबियों सँग ये मेरे सपनो का घर!
बस वचन ये चाहिए तुम साथ रहना उम्र भर!
द्वार घर का है प्रतीक्षित देहरी पथ को निहारे!
कक्ष सब बेचैन घर के खिड़कियां तुमको पुकारें!
शीघ्र आओ और आकर नेह के सतिये सजा दो!
पूर्ण ये विग्रह करो फिर घण्टियाँ सोई बजा दो!
बोल हँस कर ही कटेगा ज़िन्दगी का ये सफर!
बस वचन ये चाहिए तुम साथ रहना उम्र भर!
कल हमे आवाज देंगी कामनाएं वे तुम्हारी!
फिर खुलेगी फूल जैसी बन्द ये मुठ्ठी कुँवारी!
देह पर तब भावना के शब्द बन चुम्बन चढ़ेंगे!
ओ शुभे तब पूर्णता की हम नई कविता लिखेंगे!
अंकुरित गीतांश होगा नेह जल से फूटकर!
बस वचन ये चाहिए तुम साथ रहना उम्र भर!
धूप का युवराज सूरज साँझ होते ही ढलेगा!
तो हमारा आयु हिरना भी हमें यूँ ही छलेगा!
केश पर चांदी चढ़ेगी देह पर दीमक समय की!
कौन तब स्वीकृत करेगा पातियाँ मेरी विनय की!
श्वांस जब उखड़े हमारी गोद में रक्खोगे सर!
बस वचन ये चाहिए तुम साथ रहना उम्र भर!