भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहनें / अमित धर्मसिंह
Kavita Kosh से
बहनें शांत हैं
सौम्य और प्रसन्नचित्त भी
उनके चेहरे की उजास
कम नहीं हुई
दुनियाभर की
झुलसाहट के बाद ।
बहनें
हमारे हाथ में
बाँधती हैं रक्षासूत्र
करती हैं कामना
हमारी सुरक्षा की ।
बहनें हमारे घर में नहीं रहतीं
ख्याल में नहीं आतीं
सपने में भी कहाँ आती हैं बहनें
पता नहीं
किस चोर दरवाज़े से
ले जाती हैं हमारी बलाएँ ।
माँ की नसीहत
पिता की डाँट
भाई की झल्लाहट के बाद
खुश दिखतीं हैं बहनें
हमारी ख़ुशी के लिए।
हमारी ख़ुशी के लिये
अपनी ख़ुशी
अपने सपने
अपना मन मारती हैं बहनें
बहनें हमारे पास नहीं
साथ होती हैं
अपनी उपस्थिति
दर्ज़ कराये बगैर ।
सच !
हमसे छोटी हों
या बड़ी
हर हाल में
हमसे बड़ी
होती हैं बहनें ॥