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बहलै बसंती बयार / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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बहलै बसंती बयार, मनमा में उठलै हिलोर॥टेक॥
अंग-अंग फड़कै है, हुनको यादोॅ सतावै छै
चिठियोॅ नै भेजै चितचोर।
कहि-कहि जाय छै, जायकेॅ भूलि जाय छै
तनिकोॅ न लै छै सुधि मोर।
अबकी जे ऐतै सखि हुनका जाभौ नै देवै
करवै विनय करजोर।