भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहल जायेगा दिल बहलते बहलते / हरकीरत हीर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे दिल के अरमां रहे रात जलते
रहे सब करवट पे करवट बदलते

यूँ हारी है बाज़ी मुहब्बत की हमने
बहुत रोया है दिल दहलते-दहलते

लगी दिल की है जख्म जाता नहीं ये
बहल जाएगा दिल बहलते-बहलते

तड़प बेवफा मत जमाने की खातिर
चलें चल कहीं और टहलते-टहलते

अभी इश्क का ये तो पहला कदम है
अभी जख्म खाने कई चलते-चलते

है कमज़ोर सीढ़ी मुहब्बत की लेकिन
ये चढ़नी पड़ेगी, संभलते संभलते

ये ज़ीस्त अब उजाले से डरने लगी है
हुई शाम क्यूँ दिन के यूँ ढलते ढलते

जवाब आया न तो मुहब्बत क्या करते
बुझा दिल का आखिर दिया जलते जलते

न घबरा तिरी जीत ही 'हीर' होगी
वो पिघलेंगे इक दिन पिघलते पिघलते