मेरे दिल के अरमां  रहे रात जलते
रहे सब करवट पे करवट बदलते
यूँ हारी है बाज़ी मुहब्बत की हमने 
बहुत रोया है दिल दहलते-दहलते
लगी दिल की है जख्म जाता नहीं ये 
बहल जाएगा दिल बहलते-बहलते 
तड़प बेवफा मत जमाने की खातिर
चलें चल कहीं और टहलते-टहलते 
अभी इश्क का ये तो पहला कदम है 
अभी  जख्म खाने कई चलते-चलते
है कमज़ोर सीढ़ी मुहब्बत की लेकिन 
ये चढ़नी  पड़ेगी, संभलते  संभलते
ये ज़ीस्त अब उजाले से डरने लगी है 
हुई शाम क्यूँ दिन के यूँ  ढलते ढलते
जवाब आया न तो मुहब्बत क्या करते 
बुझा दिल का आखिर दिया जलते जलते
न घबरा तिरी जीत  ही 'हीर' होगी 
वो पिघलेंगे इक दिन पिघलते पिघलते