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बहारें हमको ढूंढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे / मजरूह सुल्तानपुरी
Kavita Kosh से
हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे...
बहारें हमको ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे
इसी अंदाज़ से झूमेगा मौसम, गाएगी दुनिया
मोहब्बत फ़िर हसीं होगी, नज़ारे फ़िर जवाँ होंगे
न तुम होगे न हम होंगे, न दिल होगा मगर फ़िर भी
हज़ारों मंजिलें होंगी हज़ारों कारवां होंगे