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बहुत कठिन है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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बहुत कठिन है
बीज धूप के घर-घर बोना

गुफाघरों के बंद पड़े खिड़की-दरवाज़े
गृहमंदिर में थुलथुल देवा आन बिराजे

मणिदीपों से
सजा हुआ हर घर का कोना

राजकोट में धूप कभी भी पैठ न पाती
गई सहेजी बुझे हुए दीये की बाती

भूल गये दिन
अँधियारे से जोत बिलोना

सिंधु-पार से लाई गई लक्ष्मी श्यामा
विष्णुप्रिया थी–अब वह है असुरों की वामा

जूठा रक्खा है
प्रसाद का, साधो, दोना