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बहुत रौशन है शाम-ए-ग़म हमारी / हबीब जालिब
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बहुत रौशन है शाम-ए-ग़म हमारी
किसी की याद है हमदम हमारी
ग़लत है ला-तअल्लुक़ हैं चमन से
तुम्हारे फूल और शबनम हमारी
ये पलकों पर नए आँसू नहीं हैं
अज़ल से आँख है पुर-नम हमारी
हर इक लब पर तबस्सुम देखने की
तमन्ना कब हुई है कम हमारी
कही है हम ने ख़ुद से भी बहुत कम
न पूछो दास्तान-ए-ग़म हमारी