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बहुत सुनसान दिन हैं और बहुत वीरान रातें हैं / परमानन्द शर्मा 'शरर'
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बहुत सुनसान दिन हैं और बहुत वीरान रातें हैं
तुम्हारे चाहने वाले की ये मरने की बातें हैं
फ़िराक़े-यारो-फ़िक्रे-रूज़गारो-मातमे-दुनिया
अकेली जान से वाबस्ता कितनी वारदातें हैं
वही हाले-परीशाँ है वही आवारगी दिल की
तुम्हारी याद है और रात भर तारों से बातें हैं
बहार आज़ारे-जाँ<ref>जान के लिए यंत्रणा</ref>आतिश-फ़िशाँ<ref>आग उगलती रही</ref>हैं चाँद की किरनें
ये दिन भी कोई दिन हैं और ये रातें कोई रातें हैं
वो रातें वो मुलाक़ातें मुसलसल<ref>लगातार</ref> बे-पनाह बातें
‘शरर’ अब रह गई बाक़ी बस उन बातों की बातें हैं
शब्दार्थ
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