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बहुत है दर्द होता हृदय में साथी / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'

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बहुत है दर्द होता हृदय में साथी!
कि जब देखता हूॅं सामने
कौड़ियों के मोल पर सम्मान बिकता है
कौड़ियों के मोल पर इन्सान बिकता है!
किन्तु कितनी बेखबर यह हो गयी दुनिया
कि इस पर आज भी पर्दा दिए जाती!

देखता हूॅं हर जगह खुदगर्ज का मेला
अल्प ही हमदर्द ऐसा है
नहीं कुछ गर्द हो जिसमें
नहीं कुछ जर्द हो जिसमें
किन्तु कितनी बेखबर यह हो गई दुनिया
कि इस पर आज भी पर्दा दिए जाती!

अभी जो सामने से बंधु बन आता
औ दिल को खोलकर है प्रीति दिखलाता
वही तो पीठ पीछे बंधु का घाती
वही तो पीठ पीछे मृत्यु-संघाती
किन्तु कितनी बेखबर यह हो गई दुनिया
कि इस पर आज भी पर्दा दिए जाती!