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बाँसुरी / रेखा
Kavita Kosh से
उपमा अलंकार
मुझ पर न लादो बरबस
आओ
मैं अपना परिचय स्वयं दूँ
मैं
एक खोखला
कुरूप बाँस हूँ
खंडित और छिद्रमय
मेरे भीतर
दीर्घशून्य है
पर जब तुम
छूते हो मेरी अनघड़ काया को
अपने थरथराते अधरों से
तो
मैं भूल जाती हूँ खुद को
लगता है
मैं कुछ 'और' भी हूँ
मेरा परिचय
कुछ् 'और' भी है
तुम कह दो
कह दो न तुम___
तुम बाँस ही नहीं
हो
बाँसुरी भी।
1968