भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाँसों के वनों तले / विकि आर्य
Kavita Kosh से
बाँसों के वनों तले
क्यों पसरे रहते हैं
अंधेरे और नाग ?
गाँठ - गाँठ बंधे पड़े हैं
सब बाँस !
कोई भी गीत नहीं गाता
या तो चिर कर पटपटाते हैं
या केंचुल सी उतारते हैं
अभिव्यक्ति के लिए
खुले हुये मुख नहीं हैं
किसी के पास !
सब के सब बाँस,
सिर्फ बाँस हैं
बहुत भाग्यशाली होते हैं
वे बाँस, जो बाँसुरी बनते हैं
किसी को कुछ कह सकते हैं,
रो सकते हैं,
गा सकते हैं!