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बाँस : जीवन का झुरमुट / पूनम वासम

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एक

घर के बाड़े में उग आए बाँस के झुरमुट किसी पिता की तरह लगते हैं
जो बिना कुछ कहे उठा लेते हैं
अपने कन्धों पर आधा बोझ ।

बाँस के झुरमुट जानते हैं
सूखे भात को गले से नीचे सरकने में कितना वक़्त लगता है
फिर भी शिकायत नही करते बाड़े के भीतर रहने वाले लोग
मोटी बेस्वाद हो चुकी जीभ भी कुछ नही कहती ।

गले की नली भी मोटे चावल के दानों को पहुँचा देती है
अन्तड़ियों तक बिना कुछ कहे
इस आस पर कि
बाँस के झुरमुट से फूटेंगे नवाँकुर
जो लगाएँगे अपनी क़ीमत हाट-बाज़ारों में
उस एक दिन सुकसी झोर के साथ
भात का स्वाद दुगुना हो जाएगा ।

दो

बाँस के झुरमुट में
तगड़ी हस्तरेखाओं के सहारे
कोपलों को मुँह चिढ़ाती
निश्चितता के भ्रम में खोए मदमस्त
कुछ बाँस बढ़ते हैं तेज़ी से
अपने आस-पास के बाँसों को छोड़कर पीछे ।

पर परिपक्व बाँस भी,
कहाँ दे पाते हैं धोखा उन ठेकेदारों को
जिन्हें पता है इनके गदराए बदन की क़ीमत ।

तीन

बाँस के झुरमुट से ढूँढ़ ही लेती है मनकी
बेहद नाज़ुक उजला स्वादिष्ट बास्ता
टोकनी में भरते वक़्त,
मनकी की आँखे कर आती हैं भविष्य का मुआयना
सम्भल जाती है मनकी ।

और भी सतर्कता से काम करने लगते हैं
उसके दोनों हाथ,
ऐसे जैसे टोकरी में बास्ता नही
कोई सुनहरा स्वप्न भर रही हो
आने वाली पीढ़ी के लिए ।

कभी-कभी बाँस का यह झुरमुट
मनकी को
किसी कल्पवृक्ष की तरह
लगने लगता है ।

चार

झुरमुट में
ऊँचे खड़े कुछ बाँस मुस्कुराते हैं
कभी-कभी खिलखिलाकर हँस भी लेते हैं
कभी-कभी रोते भी हैं
अपनी ज़मीन से उखाड़े जाने का दर्द समझते हैं ।

बाड़े में उग आए बाँसों को पता है
कि अन्तिम बोझ लादने की ज़िम्मेदारी
इन्हीं के कन्धों पर है ।

पाँच

सत्य तो यही है
कि बाड़े के भीतर उग आए
बाँस के झुरमुट केवल झुरमुट नही
बल्कि मनकी के हलक में,
कब से अटकी हुई एक आधी-अधूरी कहानी है

एक कुरा नमक
एक कुरा हल्दी के बदले
बास्ता का सौदा करते वक़्त
मनकी का दिल दहल जाता है

बाड़े में उग आए बाँस के झुरमुट से
चुन-चुनकर
मनकी जब नवाँकुर बाँस बेचती है
तब पता होता है मनकी को
कि भूख से बड़ी कोई दूसरी बात,
इस धरती पर हो ही नही सकती
कि किसी की कोख़ की फ़सल काटकर
अपनी कोख को सूखने से बचाने का अपराध
मनकी हर साल करती है ।

आँसू की एक बून्द का बोझ
और भूख के गणित का समीकरण हल करना
कोई मामूली बात थोड़े ही है ।

मनकी सोचती तो ज़रूर होगी
कि बास्ता की सब्ज़ी
इतनी स्वादिष्ट क्यों बनती है ?