भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाकलीन में हैं आप / निज़र सरतावी / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेरूत से 45 किलोमीटर दूर चौफ़ पर्वतमाला की लेबनान पहाड़ी के अंचल में बसे क़स्बे का नाम बाकलीन है।

ऐ राहगीर !
ज़रा ठहरो,
अपनी घड़ी की सुइयाँ मिलाओ
अपने आस-पास की चीज़ों की लय से

सूरज भी अपनी चाल कम कर देता है
जब गुज़रता है यहाँ से
ताकि भर सके अपनी आँखों को
चौफ़ पहाड़ियों के क़दमों में बिछी ख़ूबसूरती से

रूको ! रूको ! रे राहगीर !
अपने दिल की धड़कनें मिलाओ
यही वह जगह है जहाँ
चौफ़ की पहाड़ियाँ सिर उठाकर
बादलों को गले लगाती हैं
और दुल्हनों की तरह खड़े देवदारू के पेड़
सूरज की छाती से पीते हैं दूध
यहीं उल्लास और प्रेम की उत्तेजना में
देवता अपनी पुरानी शराब
कवियों के मुँह में उड़ेलते हैं

रूको ! ओ राहगीर !
अपनी जूतियाँ उतारो
आख़िर तुम पहुँच गए हो बाकलीन।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

अब यही रचना अँग्रेज़ी में पढ़िए
      You Are In Baakleen

Hey you passer-by!
Linger awhile
Adjust the handles of your watch
on the rhythm of the things around you
The sun slows down his pace
when he passes from here
to fill his eyes with the Chouf foothills

Stop, O passer-by!
Adjust the beats of your heart.
Here the Chouf peaks
hug the clouds
Here the brides of cedar
feed from the breasts of the sun
Here is the ascension of love and ecstasy
Here the gods pour their aged wine
in the mouths of poets

Dismount O passer-by!
Take off your sandals
for you are in Baakleen*

(Translated from Arabic by Nizar Sartawi)