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बाक़ी अछि / उदय नारायण सिंह 'नचिकेता'
Kavita Kosh से
तमिस्राक निर्मोक एखनहुँ धरि
हमरा सबकेँ स्वाधीनता नहि देने अछि।
हमरा सभक संस्कृतिक कसौटी पर
घसैत-घसैत ओहि तामसीक आयु-काल नि:शेष हैवा लेल अपेक्षमाण अछि।
प्रत्येक युगक आरम्भ भेल अछि
प्रदीप-शिखा-द्वारा तम-तोमक ताड़नाक माध्यमे।
किन्तु मनुष्य बड़ मूढ़ अछि; पेट्रोमैक्स कें बुझैछ सूर्य।
तैं प्रति सभ्यताक परिणति भेल अछि करुण ।
प्रति बार मनुष्यक अदम्य उत्साह-
साधारण निर्बुद्धिताक लेल भेल दमित ।
किन्तु प्रबल उत्साह-दीपक अवशिष्टांश पुनः भक् द' जरल दुगुन तेज सँ;
अपन भास्वरता सँ क्षीण बनौलक अन्धकार कें।
तमसाक रूपान्तर भेल अनादि आकाशक नीलिमा मे;
तकर व्याप्ति अछि अपरिवर्तित।
ज्ञान-सूर्य सँ तकरा उद्भासित करवा में
बहुत देरी अछि।