बागीचे के सिपाही / भारत भूषण तिवारी / मार्टिन एस्पादा
तख्ता-पलट के बाद
नेरूदा के बागीचे में एक रात
सिपाही नमूदार हुए
पेड़ों से पूछ-ताछ करने के लिए लालटेनें उठाते
ठोकरें खाकर पत्थरों को कोसते
बेडरूम की खिड़की से देखे जाने पर वे
किनारों पर लूट मचाने के लिए
समंदर से लौटे
डूब चुके जहाज़ों वाले मध्य-युगीन आक्रान्ताओं की तरह
लग सकते थे
कवि मर रहा था
कैंसर उनके शरीर के अन्दर से कौंध गया था
और शोलों से लड़ने के लिए
उन्हें छोड़ गया था बिस्तर पर
इतने पर भी जब लेफ्टिनेंट ने ऊपरी मंजिल पर धावा बोला
नेरूदा ने उसका सामना किया और कहा:
यहॉं तुम्हें सिर्फ एक ही चीज से खतरा है: कविता से
लेफ्टिनेंट ने अदब के साथ टोपी उतारकर
श्रीमान नेरूदा से माफी माँगी
और सीढ़ियाँ उतरने लगा
पेड़ों पर के लालटेन एक एक करके बुझते चले गये
तीस सालों से
हम तलाश रहे हैं
कोई दूसरा मन्तर
जो बागीचे से
सिपाहियों को ओझल कर दे