भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाज़ार-4 / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाजार में
नन्हें पौधे
अपनी जमीन
बंधु-बांधवों से अलगाए गए
उदास पौधे
खरीदार को आते देख
पीले पड़ जाते
छूने पर सिकुड़ जाते
मोलभाव करने पर
एक-दूसरे से लिपट जाते
सुकुमार पौधे
सिर हिला-हिलाकर कर रहे हैं
बेचे जाने का विरोध
निर्बल-निरुपाय पौधे