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बाज़ार-4 / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
बाजार में
नन्हें पौधे
अपनी जमीन
बंधु-बांधवों से अलगाए गए
उदास पौधे
खरीदार को आते देख
पीले पड़ जाते
छूने पर सिकुड़ जाते
मोलभाव करने पर
एक-दूसरे से लिपट जाते
सुकुमार पौधे
सिर हिला-हिलाकर कर रहे हैं
बेचे जाने का विरोध
निर्बल-निरुपाय पौधे