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बाज़ार / पवन करण
Kavita Kosh से
तुम किसी का हक़ क्यों नहीं मारते
किसी को लूटते क्यों नहीं
किसी का गला काटने का कमाल
क्यों नहीं करते तुम, मेरी दुनिया में
तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं
चलो भागो यहाँ से तुम्हारे शरीर से
पसीने की गंध आती है
तुम्हें अँग्रेज़ी नहीं आती
तुम बासी रोटी खाना कब छोड़ोगे
तुम फ़र्श साफ़ कर सकते हो
तुम थूक साफ़ कर सकते हो
तुम सामान उठा सकते हो
तुम सलाम ठोक सकते हो
तब भी मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं
आना जब तुम्हारी जेबें भरी हों
भले ही नोट ख़ून से लिथड़े हों