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बाज़ार / सुनील कुमार शर्मा

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बाज़ार जानता है
कविता उठाती है
जो प्रश्न

उत्तर उन के
अखबारों में
समाचारों में
अक्सर नहीं मिला करते

वैसे पढ़ना सुनना
नितांत निजी विकल्प है।