बाजार / राजीव रंजन
कदम-कदम पर खुला है आज यहाँ बाजार।
हड्डियों पर ही है खड़ी इसकी सजी-धजी दीवार।
चमचमाती लाल रोशनी से आज यह है गुलजार।
न जाने किसकी आँखों से या तन से निकल पानी,
कदम-कदम पर सजे है, यहाँ फब्बारे हजार।
कदम-कदम पर खुला है आज यहाँ बाजार।
सजी-धजी दुकाने हैं, बिकता इसमें हर समान।
बिकने को सज-धज कर खड़ा है आज बुत बना इंसान।
हाड़-मांस की नहीं कोई कीमत, बिकता यहाँ हृदय-पाशाण।
नाम-ईनाम सभी बिकते और लाखों में बिकता ईमान।
आत्मा को मार, पैसे से तौला जाता यहाँ हर पल सम्मान।
प्यार-मुहब्बत का नहीं कोई खरीदार, नफरत की-सजी है हर तरफ
दुकान।
इंसानियत आज यहाँ खाता दर-दर की ठोकर।
और फलता-फूलता आज यहाँ है कदाचार।
गीत-संगीत, डिस्को संग नाचता आज बाजार।
किसको फुर्सत आज सुन ले इसके बीच दबी चीत्कार।
इस चकाचौंध भरे कोलाहल में कौन सुन-
पाता है खून, पसीने औ हड्डियों की पुकार।
नहीं बिकने वाला मुझसा आज बना यहाँ लाचार।
कदम-कदम पर खुला है आज यहाँ बाजार।