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बाढ़ / केशव

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हर बार
उतरता है आसमान
धरती पर

और उसे अपनी छाती से चिपका लेता है

आसमान खौलता है
धरती की छाती में
और टुकड़ा-टुकड़ा
दिखाई देने लगते हैँ
मकान
   पेड़
        आदमी
आदमी पेड़ पर बैठा
देखता है चारों ओर
सिर्फ छतें हैं
छतों पर उकडूँ बैठा भगवान
या आसमान

हर बार यही होता है
आदमी चाहता है
कि वह धरती के सीने से
पेड़ की तरह फूटे
और आसमान को
कंधे पर उठाकर
छोड़ आये इस बस्ती के पार

वह न धरती से
न आसमान से
सिर्फ पेड़ से अपनी व्यथा कह सकता है
कि पेड़ बनकर वह
धरती का दुख सह सकता है