बात कुछ और थी पर बात नज़ारे पे हुई / रवि सिन्हा
बात कुछ और थी पर बात नज़ारे पे हुई
शब<ref>रात (night)</ref> से गुफ़्तार<ref>बातचीत (conversation)</ref> भी इक दूर के तारे पे हुई
सीपियाँ रेत घरौंदे किन्हीं पैरों के निशान
इक समन्दर से मुलाक़ात किनारे पे हुई
यूँ तो फ़ातेह<ref>विजेता (victor)</ref> हक़ीक़त के बहुत आये थे
बात महफ़िल में किसी ख़्वाब के मारे पे हुई
हम तो समझे थे कि लहरों की रवानी है हयात<ref>ज़िन्दगी (life)</ref>
ग़र्क़ कश्ती मिरी दरिया के इशारे पे हुई
जीत आसान थी लड़ना जो ख़ुदा से होता
हार बरपा तो असल ख़ल्क़<ref>लोग, सृष्टि (people, creation)</ref> से हारे पे हुई
हमने बाज़ार में सूरज भी उतारे हैं मगर
सुब्ह आमद से हुई शाम ख़सारे<ref>नुक़सान (loss)</ref> पे हुई
नज़्म<ref>पद्य (verse)</ref> पे नस्र<ref>गद्य (prose)</ref> पे तख़्लीक़<ref>सृजन (creation)</ref> पे हो सकती थी
बहस इस बार अदीबों<ref>साहित्यकार (writer, litterateur)</ref> में गुज़ारे<ref>जीविका ( livelihood)</ref> पे हुई