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बात बीतगी / राजूराम बिजारणियां
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झारमझार
रोई मटकी
....रीतगी!
भीज्यो अंतस
पळींडै रो
पण...बात बीतगी!
पळींडै
जोड़यां हाथ
पकड़यां पग
मटकी छुड़ाई बां‘व
धूजी रग
नीची कर नाड़
बैठगी जाय‘र
गाडै में।
‘‘प्रीतम..!
चाली म्हैं उण गांव
ठाह नीं जिणरो नांव
करण नै नातो
बीजै पळींडै सूं.!’’