बात सच ही किसी ने कही है।
मात से भी बड़ी ये मही है॥
जीव को जन्म दे पाल लेना
वेदना बस जननि ने सही है॥
ईश से भी महत्तर सदा ही
जन्म दे बन विधाता रही है॥
अन्न जल वायु दे नित सँभाले
नेह-गंगा नयन से बही है॥
मान पाती नहीं माँ जहाँ पर
वो इमारत सदा ही ढही है॥