भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादलों तक / मनीष मूंदड़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक नयी पगडंडी खींच
बादलों तक
चलो चलतें हैं दूर कहीं
अनजान सफर
हो सवार हवा पे,
होते है रूबरू जि़ंदगी से
बहुत हुआ चलना
जानी पहचानी राहों पर
बहुत हुआ रुकना
पुरानी बातों पर
आओ अब एक नया आयाम दें
चलो एक नयी पगडंडी खींचे
बादलों तक।