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बादल के जैसा मनुष्य / शंख घोष / रोहित प्रसाद पथिक
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मेरे सामने से टहलते हुए जाता है
वह एक बादल जैसा मनुष्य
उसके शरीर के भीतर प्रवेश करने पर
मालूम पड़ता है कि
सारा पानी धरती पर झड़ जाएगा ।
मेरे सामने से टहलते हुए जाता है
वह एक बादल जैसा मनुष्य
उसके सामने जाकर बैठने पर
मालूम पड़ता है कि
पेड़ की छाया आ जाएगी मेरे पास ।
वह देगा कि लेगा ?
वह क्या आश्रय चाहता है ?
न कि आश्रम में है ...?
मेरे सामने से टहलते हुए जाता है
वह एक बादल जैसा मनुष्य ।
उसके सामने जाकर खड़े होने पर
मैं भी शायद कभी किसी दिन
बन जाऊँगा बादल ...?
मूल बांग्ला से अनुवाद : रोहित प्रसाद पथिक