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बादल जी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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तितली उड़ती,चिड़िया उड़ती,
कौये कोयल उड़ते|
इनके उड़ने से ही रिश्ते,
भू सॆ नभ के जुड़ते|
धरती से संदेशा लेकर ,
पंख पखेरु जाते|
गंगा कावेरी की चिठ्ठी,
अंबर को दे आते|
पूरब से लेकर पश्चिम तक,
उत्तर दक्षिण जाते|
भारत की क्या दशा हो रही ,
मेघों को बतलाते|
संदेशा सुनकर बादलजी,
हौले से मुस्कराते|
पानी बनकर झर झर झर,
धरती की प्यास बुझाते|