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बाद इसके मुझे ग़म दे के रुलाया जाए / सिराज फ़ैसल ख़ान

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बाद इसके मुझे ग़म दे के रुलाया जाए
पहले रोने का सलीक़ा तो सिखाया जाए ।

हुस्न को चाँद जवानी को कँवल लिख दूँगा
कोई ऐसा मुझे दुनियाँ मेँ दिखाया जाए ।

वो बुरा कह के मुझे ख़ुद भी तो शर्मिन्दा है
सोँचता है मुझे सीने से लगाया जाए ।

जान जब आ के अटक जाए मेरे होटोँ पर
मुझको ग़ालिब का कोई शे'र सुनाया जाए ।

उनसे शिकवा है शिकायत है गिला भी लेकिन
मैँ चला आऊँगा गर मुझको बुलाया जाए ।