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बाधाएँ चुनौती हैं / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
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बाधाएँ --

निरुत्साहित नहीं करतीं हमें,

प्रतिक्षण बनातीं

बल सजग।

कठिनाइयों के सामने

पग डगमगाते हैं नहीं,

प्रत्युत्

लगा कर पंख बिजली के

धरा-आकाश का विस्तार लेते नाप !


बाधाएँ --

'विकट, दुर्लंध्य, अविजित'

है निरा अपलाप !


बाधाएँ --

बनातीं परमुखापेक्षी नहीं हमको,

बाधाएँ --

बनाती हैं न किंचित दीन

उद्यमहीन हमको।


वे जगातीं

सुप्त अन्तर-शक्तियाँ सारी

न भय रहता, न लाचारी !


कौंधती बिजली सबल तन में

उभरते दृढ़ नये संकल्प मन में !


बाधाएँ: चुनौती हैं !

इन्हें स्वीकारना --

पर्याय:

मानवता-महत्ता का !

इन्हें स्वीकारना --

उद्घोष:

जीवन की चिरन्तन

ऊर्ध्व सत्ता का !

इन्हें स्वीकारना --

पहचान :

तेजस्वी,

सतत गतिमान

मानव के पराक्रम की !

इन्हें स्वीकारना --

अनुभूति :

चिर-परिचित

मनुज-इतिहास-प्रमाणित

अथक श्रम की !


बाधाएँ --

हतोत्साहित नहीं करतीं कभी

बाधाहरों को !

वे बनातीं

और भी दृढ़

धारणाओं को।


कठिन के सामने मेधा

कभी होती नहीं दूषित,

वरन् उद्भावना उन्मेष से भर

और हो उठती प्रखर !


प्रत्येक बाधा

हीन होगी,

नष्टशून्य-विलीन होगी !