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बानी-ए-जोर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद / 'अमानत' लखनवी
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बानी-ए-जोर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद हैं सब
राहत-ए-जाँ कोई दिल-बर नहीं जल्लाद हैं सब
कभी तूबा तेरे क़ामत से न होगा बाला
बातें कहने की ये ऐ ग़ैरत-ए-शमशाद हैं सब
मिज़ा ओ अबरू ओ चश्म ओ निगह ओ ग़म्ज़ा ओ नाज़
हक़ जो पूछो तो मेरी जान के जल्लाद हैं सब
सर्व को देख के कहता है दिल-बस्ता-ए-ज़ुल्फ़
हम गिरफ़्तार हैं इस बाग़ में आज़ाद हैं सब
कुछ है बे-हुदा ओ नाक़िस तो 'अमानत' का कलाम
यूँ तो कहने को फन-ए-शेर में उस्ताद हैं सब