उस चेहरे पर दो आँखें
सूरज और चाँद-सी चमकती हैं
आत्मविश्वास की एक पतंग
उड़ती रहती है
विपत्ति की आँधी से जूझते
खिलते हैं ऑर्किड और बुरांस
उस चेहरे पर हर सुबह
नए दिन का बोझ उठाने
एक सूरज उगता है
जो शाम को दुःख की लकीरों को छिपाए
ख़ुशियों की छोटी-छोटी पोटलियाँ उठाए
आते हैं उजियाला बनाते हुए घर-आँगन
उस चेहरे पर संसार को
पढ़ने वाली आँखें छोटी हैं
आत्मसम्मान उठाए खड़ी नाक दबी-सी है
सुख-दुःख फिसलन खेलती गालें झुर्रीदार हैं
मुस्कुराहट लेफ्ट-राइट करते होठों पर दरारें पड़ गई हैं
धूप से झुलसा है मंगोल पहचान
मुझे अच्छा लगता है
बहुत अच्छा लगता है
जब सब लोग सुनाते हैं
“तेरा चेहरा, बिल्कुल तुम्हारे बाबा के जैसा है।”