भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबा तखनी सबकॅे बोलै-बैटा, उत्तम खेती / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाबा तखनी सबकेॅ बोलै-बैटा, उत्तम खेती
ओकरा सेँ नीचै छै वानिज, चाकरी ओकर्हौ नीचेॅ
तैहियो वनिज छै अच्छा, तेसरें तेॅ नरक्हैं में खीचेॅ
पुरखा रोॅ अनुभव ई छेकौं सब्भैं राखोॅ सेती
आजादी के ऐतेँ-ऐतेँ अनुभव जाय बिलैलै
खेती गेलै, वनिजो गेलै, चाकरी के छै होड़
ई भी रास अजब छै भैया बाघ-हरिन रोॅ जोड़
अंगरेजी शिक्षा रोॅ रसिया अंगुठाछाप रसैलै
खेती-बनिज रोॅ साथें नौकरियो रोॅ ठंडा नाड़ी
मुर्दा के अंग नोचै सब्भैं, जे भी जन्नें पावै
किडनी सेँ लै केॅ काँखी तांय सब्भै केॅ मन भावै
जंगल तेॅ जारन भै गेलै, आबेॅ नोचै झाड़ी
की खोजै छोॅ नौकरी भैया, काँहौं नांय छौं चांस
मारा-पीटी, असम-बिहारी के सगरो छै डांस।