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बाबा नागार्जुन के प्रति / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
बाबा तुमने बादल को घिरते देखा है।
बाबा तुमने धरती का हर रंग पढ़ा है।
बाबा तुमने हर ग़लती पर वार किया है,
फिर भी बाबा कैसे सबका प्यार लिया है।
भटक-भटक कर उनको चूमा जो खोए थे
तुमने बाबा भीतर से पर-दुख पहचाना
लेकिन बाबा सच-सच कहना मत टरकाना
कालिदास या अज रोया या तुम रोए थे।
जग जिसको सधना कहता है तुमने छोड़ा
साध रहे हो छन्द और जीवन की लय को
फोड़-फोड़ कर भाषा-गुट्ठल छोड़ा घोड़ा
महायज्ञ का, ढूंढ रहे जन-जन की जय को।
कितनी कड़ियल कोमल है भीतर की आभा
खिला रहे हो जिससे जग में आशा बाबा।