बाबा ने कहा था / सोहनलाल सुमनाक्षर
बलि, भेड़-बकरियों की दी जाती है,
कभी शेरों की नहीं
इसलिए बाबा ने कहा—
बेटो! शेर बनो, बकरी नहीं
शेर बनोगे तो, तुमसे डरेगा ज़माना
फिर तुम पा सकोगे— सत्ता, सम्मान, समता
जो दीनता से अभी नहीं है पाना।
सिंह में कुछ विशेष गुण भी होते हैं दोस्तो!
शेर भूखा मर जाएगा, पर घास नहीं खाएगा।
शेर दुश्मन पर टूटेगा, जीवन तक झूझेगा,
पीठ न दिखाएगा, सिर न झुकाएगा।
शेर, भेड़-बकरियों की तरह
झुंडों में नहीं चलता,
अरे शेर तो शेर है,
वह अकेला ही सवा शेर है
वह अपना रास्ता ख़ुद बनाता है,
फिर आगे क़दम बढ़ाता है और दूसरों के लिए
अपनी लीक छोड़ जाता है।
जो बलवान है, वह किसी को
'अभय' दान दे सकता है, जो धनवान है वही किसी को
'धन' दान दे सकता है
जो निर्बल है,
वह दूसरे की क्या रक्षा कर पाएगा?
जो निर्धन है, भूखा है,
वह दूसरों को क्या खिलाएगा?
इसलिए मेरे दोस्तो
बाबा का कहा मानो—
भेड़-बकरियाँ नहीं, शेर बनो
शेर बनोगे तो तुम्हें कभी कोई नहीं सताएगा,
दुश्मन भी तुमसे डरेगा
और तुम्हारी वीरता के गुण जाएगा।