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बाबू, दादी पूछतूँ ह घड़ी रे घड़ी / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बाबू, दादी पूछतूँ ह<ref>पूछती हैं</ref> घड़ी रे घड़ी।
बाबू कइसन<ref>किस तरह की, कैसी</ref> बनल हौ<ref>बनी है</ref> ससुर के गली॥1॥
मामा<ref>दादी</ref> का तूँ पूछऽ हऽ<ref>पूछती हो</ref> घड़ी रे घड़ी।
मामा, सोने के मढ़ल ससुर के गली॥2॥
बाबू, झुट्ठो बड़ाई हमरा से करी।
कादो कीचड़ भरल हे ससुर के गली॥3॥
बाबू, भूल गेलऽ आपन बाबू के गली॥4॥
शब्दार्थ
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