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बारिश का मौसम बीत गया आकाश में पर बादल न हुए / अशोक रावत

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बारिश का मौसम बीत गया आकाश में पर बादल न हुए,
कुछ ऐसे ही ये मुद्दे हैं धरती से कभी जो हल न हुए.

यूँ हम भी गए मंदिर मस्जिद, जैसा कि चलन है दुनिया का,
इन पत्थर की दीवारों के हम दिल से मगर कायल न हुए.

बस यूं ही जीवन बीत गया, एक दिन भी ऐसा याद नहीं,
मेरी आँखें जिस दिन भीगी नहीं, तेरे आंसू गंगाजल न हुए.

सोचा था जिएगे अपने लिए, फुर्सत में रिटायर हो के कभी,
 पर ऐसा कोई दिन न हुआ और ऐसे कभी दो पल न हुए.

ये बात अलग है अपनों की हर चोट पे हँसते हैं लेकिन,
वो आखिर कौन सा दिन था जब हर चोट पे हम घायल न हुए.

वो होश गँवा भी सकते थे, कमजोर थे भूखे थे लेकिन,
इन ताकतवर लोगों की तरह, गुस्से में कभी पागल न हुए.

जब उसकी निगाहों में कोई, दिन में ही सूरज डूब गया,
फिर धूप की चाहत में उसके दो नैन कभी चंचल न हुए.

जो सोच समझ में जाति धरम के ऊबड़ खाबड़ गड्ढे हैं,
सुनते हैं कोशिश काफ़ी हुई, लेकिन ये कभी समतल न हुए.