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बारिश मे उफ़नाई नदी के जैसी यौवन की तस्वीर / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी

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बारिश मे उफ़नाई नदी के जैसी यौवन की तस्वीर
कौन उसे पहचान सकेगा देख के बचपन की तस्वीर

झूट नही कहते मुझको दीवाना कहने वाले
दिल से लगाए बैठा हूँ मै जान के दुश्मन की तस्वीर

झूट की जो ये हार नही है तो ये आख़िर और है क्या
घर मे अपने नही लगाता कोई रावन की तस्वीर

सोने की चिड़िया कहता है इक पिन्जरे के पन्छी को
दिखला के नादान मुअर्रिख जाने किस सन की तस्वीर

हमको अपना फ़र्ज़ हमेशा याद दिलाती रहती है
काँधे पर काँवर रक्खे वो सरवन की तस्वीर

भीगा बदन और धानी चूनर, बिख्री ज़ुल्फ़ें, अँगड़ाई
कोई मुसव्विर खींच रह हो जैसे सावन की तस्वीर

मै ये नहीं कहता हूँ ’बेख़ुद’ कहने वाले कहते हैं
मेरी ग़ज़लों मे पोशीदा है मेरे फ़न की तस्वीर