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बारिश - 2 / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
रिमझिम बारिश हो रही है
जैसे आसमान से झर रहा है आटा
मिट्टी के रोम-रोम :
चींटियों के असंख्य अकुलाए मुँह
घास पर थिर हैं
बारिश के मोती
जैसे नन्ही हथेलियों में
चिरौंजी के दाने
धूप आ गई
पल भर में घास
जगमगाते हीरों की खदान में बदल गई
सूर्य को
करोड़ों परमाणुओं में बाँटने का
करिश्मा है बारिश
नहाया सूर्य
इस वक़्त ठीक सिर के ऊपर है
सोचता हूँ
इंद्रधनुष अभी कहाँ उगा होगा
क्या यह खिली हुई घास
इंद्रधनुष का ही रंग है?