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बारिश / गैयोम अपोल्लीनेर / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अस्तित्त्वहीन लगती है
पर स्मृति में बरसती है
औरतों की आवाज़ों की तरह बारिश
बीते समय की बातों से
उन जादुई मुलाक़ातों से
मेरे मन में झरती है बून्द-बून्द बारिश
रुई-से फूले हुए बादल
कानों में गरजते हैं, बरसते हैं
ब्रह्माण्ड को शर्मसार करते हैं
ध्यान से सुनो तुम, मगर
बारिश की यह झरझर
रुदन का अपमान-भरा संगीत है यह पुराना
सुनो, ज़रा, ध्यान से सुनो, तुम यह साज
है यह टूट रहे बन्धनों की आवाज़
जो तुम्हें रोकते हैं इस धरती पर और स्वर्ग में ।
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय