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बारिश / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
आज सुबह-सुबह बारिश हुई
जिसका रस भर गया है जमीन पर
सब कुछ ताजा बिल्कुल ताजा
और ये बादल कितने सारे आकाश में
धीरे-धीरे घूम रहें हैं सिर के ऊपर से
जैसे तलाश हो जमीन पर फिर से आने की
थोड़ी देर हुई बारिश
और बन गए हैं कितने सारे चित्र
सबको निहारता हुआ बढ़ रहा हूँ मैं पैदल
जिन्दगी इसी में सार्थक लगती है थोड़ी सी ।