बारिश में निकलने को मन नहीं कर रहा है 
पर वह निकलने तक ही बात है ...
बालों को सहेजती उँगलियाँ बनकर
होठों पर होठों की आर्द्रता-सी
शंखदार गले को घेरते दुग्ध सागर की तरह
स्तनों पर टूटे धागों-सी बिखरती मोतियों की तरह 
उदर पर सुखोष्मल प्रवाह-सी 
जाँघों पर,
पैरों में,
पैरों की उँगलियों में, 
स्वयं भूली हुई 
जल-नृत्य की तरह
आनंद ताण्डव की तरह 
बारिश .....