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बार-बार / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
अपने ही कमरे में
अपनी किताबों के बीच
रखी हुई चिट्ठी हिफाजत से
अचानक एक दिन खो जाय
और यह जानता भी मैं
कि वह हर्गिज मिलेगी नहीं
हर व्यस्तता में उसी को सोचूँ
हर फुर्सत में उस को ढूँढ़ता जाऊँ
हर-हर पन्ने पर हर किताब में
बार-बार ......
(1990)