भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बालगीत / राजकुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बगरो रे, बगरो
उड़ि-उड़ि जाय छैं सगरो
दाना चुनि-चुनि खाय छैं
इस्कुल तोंय नै जाय छैं
बस्तो कहाँ उठाबै छैं
गीत खुशी रोॅ गाबै छैं
मतलब नै छौ अंटा सें
गुड्डी-गुल्ली-डंटा सें
कत्ते सुन्दर टोली छौ
मिट्ठोॅ-मिट्ठोॅ बोली छौ
फुदुक-फुदुक इतराबै छैं
कहिनें भाय चिढ़ाबै छैं
हम्हरौ पंख लगाय दे
अपने रं रँगाय दे
जानै छैं तोंय अगरो
बगरो रे, बगरो