बाल कविताएँ / भाग ५ / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
रेल चली
आओ सारे बच्चो आओ
एक-एककर सब जुड़ जाओ ।
अब देखो अपनी रेल चली
यह रेल चली है गली-गली॥
रघुबीर बना इसका इंजन
बन गया गार्ड है कमलनयन ।
नदियाँ, नाले, मैदान हरे
सब गाँव-शहर यह पार करे।
हाथी दादा
आँखें छोटी सूप –से कान
दाँत हैं पैने –लम्बे ।
चले झूमते हाथी दादा
पैर हों मानो खम्बे॥
पकड़ सूँड से ऊँची डाली
पत्ते तोड़ है खाता ।
पानी पीता लकड़ी ढोता
पहुँच नदी में जाता ।
प्यारे बादल
बिखर गये हैं रूई जैसे
नन्हें –मुन्ने प्यारे बादल ।
खरगोशों की तरह कुदकते
आसमान में न्यारे बादल ।
ठण्डी –ठण्डी चलीं हवाएँ
जब है बादल शोर मचाता ।
पंख खोलकर रंग-बिरंगे
तभी मोर भी नाच दिखाता।
सावन आया
सावन आया बादल छाए
रिमझिम-रिमझिम जल बरसाएँ।
मोर नाचता है मस्ती में
खुशियाँ छाई हैं बस्ती में।
डाल-डाल पर झूला झूलें
झूल-झूलकर बादल छूलें।
तरह–तरह के पंछी गाते
बच्चे हँसते, दौड़ लगाते।
बादल
झूम-झूमकर हाथी जैसे
आसमान में छाए बादल ।
बरसा पानी चलीं हवाएँ
भारी ऊधम मचाएँ बादल ।।
तड़तड़-तड़तड़ बिजली चमकी
कैसा डर फैलाएँ बादल ।
धूप खिली तो आसमान में
इन्द्रधनुष चमकाएँ बादल ॥