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बाल जिज्ञासा / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

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मुनिया:
अब्बू! तुम कहा करते हो
कि तुमने बहुत दुनिया देखी है
तो बताओ न! कहाँ देखी है?
मुझे भी दिखाओ, जहाँ दुनिया देखी है
पापा:
बेटा! दुनिया इतनी आसानी से नहीं दीखती
उसे देखने के लिये आँख नहीं,
एक उमर चाहिये
और सिर के बाल जैसे-जैसे सफेद होने लगते हैं
दीखती जाती है दुनिया
मुनिया:
अब्बू! तुम कहते हो
कि खूब लंबी है उमर मेरी
तो, उमर है मेरे पास
रहा सवाल बालों का
तो तुम्हारी डिब्बी से चूना निकाल
रंग लूंगी बस
बोलो, अब दिखेगी कि नहीं दुनिया
पापा:
बेटा ! दुनिया देखने की ज़िद न कर
अभी ये तेरा काम नहीं
अभी तो तू पढ़, खेल, खा-पी, मौज कर
‘दुनिया’ में कोई खेल-खिलौने थोडे ही हैं
न मेले हैं और न फूलों से भरे
फिसल पट्टियों वाले बाग़ हैं।
‘दुनिया’ देखना और दिखाना
 तुझ जैसे मासूमों के लिये
सख़्त मना है
क्योंकि दुनिया महज़
कड़वे-खट्टे अनुभवों का एक मुहावरा है
तुझे पता है?
दुनिया देखने से हर कँवलापन
कड़ा हो जाता है
और हर बच्चा
वक़्त से पहले बड़ा हो जाता है।
सुन, जैसे-जैसे तू बड़ी होगी
दुनिया देखने लग जाएगी
और जब बूढ़ी होगी
तो दूसरों से यह कहने भी लग जाएगी
“मैंने बहुत दुनिया देखी है
बहुत देखी है दुनिया”
मुनिया:
नहीं अब्बू!
मैं तो आज ही देखूँगी दुनिया
मुझको नहीं होना बड़ा-बूढ़ा
मै तो आज ही देखूँगी दुनिया
पापा:
अच्छा, अच्छा !! हाथ-पैर मत पटक
अपने हठ पर इतना मत अटक
हम आज चलेंगे बाज़ार
वहाँ से लेंगे सुन्दर-सी एक गुड़िया
एक झाँझ वाला बन्दर
और चौराहे पर देखेंगे खेल मदारी का
फिर हलवाई से दिलवाऊँगा तुझे लड्डू
वहाँ से लौटते हुए
तुझे दुनिया भी दिखा दूँगा, चल
हम आज चलेंगे बाज़ार
(बाज़ार से लौटते हुए)
मुनिया:
अब्बू! हम तो लौट रहे हैं खाली हाथ
तुमने तो कहा था कि ये लेंगे-वो लेंगे
बग़ैर कुछ चीज़ लिये
मैं ना जाती आपके साथ
अब्बू हम क्यों लौट रहे खाली हाथ?
पापा:
बेटा, तुझे अगर इतनी चीज़ें दिला देता
तो बाकी बचा यह महीना
हमारी जान निकाल लेता
कि तेरे खिलौनों से ज़्यादा ज़रूरी
तेरा मेरा पेट है
बोल है कि नहीं.....?
मुनिया:
अब्बू, मुझे कुछ नहीं मालूम
मुझे तो बस इतना है मालूम
कि आपने वायदा किया था
और आप मुकर गए
आपको हमसे ज़्यादा अपनी पड़ी है
क्या चूल्हे की चिंता गुड़िया से बड़ी है?
और तो और...दुनिया भी नहीं दिखाई तुमने
जाओ, मैं कट्टी हुई आपसे...
पिता:
मैं तुझे दुनिया ही तो दिखा रहा था मुनिया
कि जहाँ वाइदा है, सपने हैं, छल है, ख़ुदगर्ज़ी है
पापी पेट की छोटी-बड़ी मर्ज़ी है
वही तो है दुनिया
कह, अब देखी कि नहीं दुनिया?
कह तो... मुनिया