भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाल वर्ष / बालस्वरूप राही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं चलेगी धौंस बड़ों की
है यह पूरा साल हमारा।

बड़े-बड़े जाते हैं पिक्चर,
हमे छोड़ जाते हैं घर पर,
चिंता नहीं किसी को इसकी
कहाँ सिनेमा- हॉल हमारा।

खेलकूद से रोका करते,
जब देखों तब टोका करते,
बात-बात पर कर देते हैं
कान खींच कर लाल हमारा !

बड़े हमे दिन भर दौड़ाते,
घर बाहर का काम का कराते।
काम बड़ा का मौज उड़ाना,
बाकी सब जंजाल हमारा !

अब आई है बार हमारी,
कसर निकालेंगे हम सारी,
कर न सकेगा दुनिया- भर में,
कोई बाँका बाल हमारा