भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाहरी बारिश / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
भरे नाले
और
नालियां
खिली हैं घरवालियाां
भागी हैं कामवालियां
आयो सावन झूम के
बच्चे खुश
तो
बूढ़े खुश
किचन में कूदे
चाय की प्यालियां
बेसन में गुत्थम गुत्था
खिलते पकौड़े
सबके चहेते
गरमागरम
चटनी संग
खूब ठने हैं
लाजबवाब इत्ते
कि मन माँगे ‘मोर’
और आखिरकार
इत्ती
झमाझम सब ओर
हर तरफ यही शोर
आयो सावन झूम के
ऐसो बरसो
कि बरस जाए
गिले-शिकवे सभी
क्या ऐसा हो
सकता है
काका ने
चाय की चुस्कियां
चुस्काते हुए कहा