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बाहरी बारिश / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

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भरे नाले
और
नालियां
खिली हैं घरवालियाां
भागी हैं कामवालियां
आयो सावन झूम के
बच्चे खुश
तो
बूढ़े खुश
किचन में कूदे
चाय की प्यालियां
बेसन में गुत्थम गुत्था
खिलते पकौड़े
सबके चहेते
गरमागरम
चटनी संग
खूब ठने हैं
लाजबवाब इत्ते
कि मन माँगे ‘मोर’
और आखिरकार
इत्ती
झमाझम सब ओर
हर तरफ यही शोर
आयो सावन झूम के
ऐसो बरसो
कि बरस जाए
गिले-शिकवे सभी
क्या ऐसा हो
सकता है
काका ने
चाय की चुस्कियां
चुस्काते हुए कहा